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________________ रूवं (रूव) 1/1 सौन्दर्य अहो अव्यय आश्चर्य अज्जस्स सोमया अहो आर्य की सौम्यता खंती अहो मुत्ती अहो भोगे (अज्ज) 6/1 (सोमया) 1/1 अव्यय (खंति) 1/1 अव्यय (मुत्ति) 1/1 वि अव्यय (भोग) 7/1 (असंगया) 1/1 आश्चर्य धैर्य आश्चर्य सन्तोष आश्चर्य भोग में असंगया अनासक्तता 6. उसके चरणों में पाए और प्रणाम करके वंदित्ता काऊण करके य (त) 6/1 स (पाअ) 7/1 अव्यय (वंद) संकृ (काऊण) संकृ अनि अव्यय (पयाहिणा) 2/1 [(नाइदूरं)+(अणासन्ने)] नाइदूरं (अव्यय)अणासन्ने (अणासन्न) 7/1 (पंजलि) 1/1 वि तथा प्रदक्षिणा पयाहिणं नाइदूरमणासन्ने न अत्यधिक दूरी पर, न समीप में पंजली विनम्रता व सम्मान के साथ जोड़े हुए हाथसहित पूछता है (पूछा) पडिपुच्छई (पडिपुच्छ) व 3/1 सक 7. तरुणो तरुण (तरुण) 1/1 (अस) व 2/1 अक सि पूरी गाथा के अन्त में आनेवाली 'इ' का क्रियाओं में बहुधा 'ई' हो जाता है। (पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ- 138) 156 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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