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हे आर्य!
अज्जो पव्वइओ भोगकालम्मि संजया उवढिओ
(अज्ज) 8/1 (पव्वइअ) भूकृ 1/1 अनि [(भोग)-(काल) 7/1] (संजय) 8/1 (उविट्ठअ) भूकृ 1/1 अनि
साधु बने हुए भोग के समय में हे संयत! स्थिर (प्रव्रज्या लेने को तैयार)
सि
सामण्णे एयमढे
(अस) व 2/1 अक (सामण्ण) 7/1 [(एयं) + (अट्ठ)] एयं (एय) 2/1 सवि अट्ठ (अट्ठ) 2/1 (सुण) विधि 1/1 सक
साधुपन में इसके, प्रयोजन को
सुणेमु ता
अव्यय
अणाहो
अनाथ
मि
मि
हे राजाधिराज!
महारायं' नाहो
नाथ
मज्झ
मेरा
(अणाह) 1/1 वि (अस) व 1/1 अक (महाराय) 8/1 (नाह) 1/1 वि (अम्ह) 6/1 वि अव्यय (विज्ज) व 3/1 अक (अणुकंपग) 2/1 वि (सुहि) 2/1 अव्यय
नहीं
विज्जई अणुकंपगं सुहिं
अनुकम्पा करनेवाले मित्र को
वा वि
अव्यय
भी
किसी
कंची
(क) 2/1 स नाभिसमेमऽहं
[(न) + (अभिसमेम) + (अहं)] न (अव्यय) अभिसमेम (अभिसमे) व 1/2 सक
अहं (अम्ह) 1/1 स 1. अनुस्वार का आगम (हेम प्राकृत व्याकरण 1-26)
नहीं, जानता हूँ,
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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