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3.
तत्थ
सो
पास'
साहु
संजयं
सुसमाहियं
निसन्नं
रुक्खमूलम्मि
सुकुमा
सुहोइयं
4.
तस्स
रूवं
पासित्ता
राइणो
तम्मि
संजए
अच्चंतपरमो
आसी
अतुलो
रुविम्हओ
5.
अहो
वण्णो
अहो
1.
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
अव्यय
(त) 1 / 1 सवि
(पास) व 3 / 1 सक
( साहु) 2 / 1
(संजय) भूक 2 / 1 अनि
( सु-समाहिय) भूकृ 1 / 1 अनि
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( निसन्न) भूक 2 / 1 अनि
[ (रुख) - (मूल) 7 / 1]
( सुकुमाल) 2 / 1 वि
[(सुह) + (उइयं )]
[ ( सुह) - ( उइय) भूकृ 1 / 1 अनि ]
अव्यय
( वण्ण) 1 / 1
अव्यय
छन्द की मात्रा के लिए 'इ' को 'ई' किया गया है।
(त) 6 / 1 स
(रूव) 2 / 1
अव्यय
(पास) संकृ
(राय) 6 / 1
(त) 7 / 1 सवि
संजए (संजअ ) 7/1
[ (अच्चतं) वि - (परम) 1 / 1 ]
(अस) भू 3 / 1 अक
(अतुल) 1 / 1 वि
[ (रूव) - (विम्हअ ) 1 / 1]
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वहाँ
उन्होंने
देखता है (देखा)
साधु को आत्म-नियन्त्रित (को)
पूरी तरह से ध्यान में लीन (को)
बैठे
(को)
हुए
पेड़ के पा
सौन्दर्य-युक्त (को)
सुखों के लिए उपयुक्त
उसके
रूप को
और
देखकर
राजा के
उस
साधु में
अत्यधिक, परम
हुआ
बेजोड़
सौन्दर्य के प्रति आश्चर्य
आश्चर्य
रंग
आश्चर्य
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