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पाठ-3 उत्तराध्ययन
1.
पभूयरयणो
राया सेणिओ मगहाहिवो
प्रचुर रत्नवाला (सम्पन्न) राजा श्रेणिक
[(पभूय) वि-(रयण) 1/1 वि] (राय) 1/1 (सेणिअ) 1/1 [(मगह)+(अहिवो)] [(मगह)-(अहिव) 1/1] (विहारजत्त) 2/1 (निज्जाअ) भूकृ 1/1 अनि (मण्डिकुच्छ) 7/1 (चेइअ) 7/1
विहारजत्तं निज्जाओ मंडिकुच्छिसि चेइए
मगध के शासक सैर को निकले मण्डिकुक्षी (में) बगीचे में
नाणादुमलयाइण्णं'
नाणापक्खिनिसेवियं
[(नाणा)-(दुम)-(लया)-(इण्ण) भूकृ 1/1 अनि [(नाणा)-(पक्खि)-(निसेविय) भूकृ 1/1 अनि [(नाणा)-(कुसुम)-(सं-छन्न) भूक 1/1 अनि] (उज्जाण) 1/1 [(नन्दण)+(उवमं)] [(नन्दण)-(उवम) 1/1 वि]
तरह-तरह के वृक्षों और बैलों से भरा हुआ तरह-तरह के पक्षियों द्वारा उपभोग किया हुआ तरह-तरह के फूलों से ढका हुआ बगीचा इन्द्र के बगीचे के समान
नाणाकुसुमसंछन्नं
उज्जाणं नंदणोवमं
'गमन' अर्थ में भूतकालिक कृदन्त कर्तृवाच्य में प्रयुक्त होता है। कभी-कभी सप्तमी का प्रयोग द्वितीया के स्थान पर पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-135) समास के प्रारम्भ में विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है। (आप्टेः संस्कृत हिन्दी कोश) समास के अन्त में इसका अर्थ होता है के समान' (आप्टे: संस्कृत हिन्दी कोश)
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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