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________________ मोहाउरा मोह से पीड़ित मणुस्सा तह [(मोह)+ (आउरा)] [(मोह)(आउर) 1/2 वि] (मणुस्स) 1/2 अव्यय [(काम)-(दुह) 2/1] (सुह) 2/1 (बू) व 3/2 सक मनुष्य वैसे ही इच्छा (से उत्पन्न) दुःख को कामदुहं सुहं बिंति कहते हैं 3. कम्म चिणंति कर्म को चुनते हैं। स्वाधीन सवसा तस्सुदयम्मि उसके, विपाक में परव्वसा होंति रुक्खं (कम्म) 2/1 (चिण) व 3/2 सक (सवस) 1/2 वि [(तस्स) + (उदयम्मि)] तस्स (त) 6/1 सवि उदयम्मि (उदय) 7/1 अव्यय (परव्वस) 1/2 वि (हो) व 3/2 अक (रुक्ख ) 2/1 (दुरुह) व 3/1 सक (सवस) 1/1 वि (विगल) व 3/1 अक (त) 1/1 स (परव्वस) 1/1 वि (त) 5/1 सवि पराधीन होते हैं पेड़ पर चढ़ता है स्वाधीन गिरता है दुरुहइ सवसो विगलइ वह पराधीन परव्वसो तत्तो उससे A. कम्मवसा खलु जीवा जीववसाई कहिंचि [(कम्म)-(वस) 1/2 वि] अव्यय (जीव) 1/2 [(जीव)-(वस) 1/2 वि अव्यय कर्मों के अधीन पादपूर्ति के लिए प्रयुक्त जीव जीवों के अधीन कहीं 134 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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