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________________ पाठ-2 समणसुत्तं अव्यय खूब अच्छी प्रकार से भी वि मग्गिज्जंतो अव्यय (मग्ग) कर्म वकृ. 1/1 अव्यय कत्थवि खोजे जाते हुए कहीं केले के पेड़ में (केली) 7/1 केली नत्थि अव्यय नहीं अव्यय जह सारो इंदिअविसएसु (सार) 1/1 [(इंदिअ)-(विसअ) 7/2] | अव्यय जैसे सार इन्द्रिय-विषयों में वैसे ही तहा नत्थि अव्यय नहीं (सुह) 1/1 अव्यय सुख खूब अच्छी तरह से यद्यपि खोजा हुआ अव्यय गवि, (गविट्ठ) भूकृ 1/1 अनि 2. जैसे खाज रोगवाला खाज को जह कच्छुल्लो कच्छु कंडूयमाणो दुहं मुणइ सुक्खं अव्यय (कच्छुल्ल) 1/1 वि (कच्छु) 2/1 (कंडूय) वकृ 1/1 (दुह) 2/1 (मुण) व 3/1 सक (सुक्ख ) 2/1 खुजाता हुआ दुःख को मानता है सुख प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 133 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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