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4. एक बार उसके घर में श्रमण-गुण-समूह से अलंकृत महाव्रती, ज्ञानी, यौवन में स्थित एक साधु भिक्षा के लिए आए। यौवन में ही व्रत को ग्रहण किए हुए शान्त और जितेन्द्रिय साधु को घर में आया हुआ देखकर आहार को प्राप्त करते हुए होने पर ही उसके द्वारा विचार किया गया- यौवन में महाव्रत अत्यन्त दुर्लभ (है)। इनके द्वारा इस यौवन अवस्था में (महाव्रत) कैसे ग्रहण किए गए? इस प्रकार परीक्षा के लिए समस्या का (उत्तर) पूछा गया- अभी समय न हुआ, पहिले ही (आप) क्यों निकल गए? उसके हृदय में उत्पन्न भाव को जानकर साधु के द्वारा कहा गया- ज्ञान समय (है)। कब मृत्यु होगी, इस प्रकार ज्ञान (किसी को) नहीं है, इसलिए समय के बिना निकल गया। वह उत्तर को समझकर सन्तुष्ट हुई। मुनि के द्वारा वह भी पूछी गई- तुम्हें उत्पन्न हुए कितने वर्ष हुए? मुनि के प्रश्न के आशय को जानकर बीस वर्ष हो जाने पर भी उसके द्वारा इस प्रकार बारह वर्ष कहे गए। फिर, तुम्हारे स्वामी के (जन्म हुए) कितने वर्ष हुए? इस प्रकार (यह) पूछा गया। उसके द्वारा प्रिय के (जन्म हुए) पच्चीस वर्ष हो जाने पर भी पाँच वर्ष कहे गये। इस प्रकार सासू के छः माह कहे गये, ससुर के लिए पूछने पर वह अभी उत्पन्न नहीं हुआ है' इस प्रकार (शब्द) कहे गए।
5. इस प्रका बहू और साधु की वार्ता भीतर बैठे हुए ससुर के द्वारा सुनी गई। भिक्षा को प्राप्त साधु के चले जाने पर वह अत्यन्त क्रोध से व्याकुल हुआ, क्योंकि पुत्रवधु मुझको लक्ष्य करके कहती है कि (मैं) उत्पन्न नहीं हुआ। वह रूठ गया, (और) पुत्र को कहने के लिए दुकान पर गया। जाते हुए ससुर को वह कहती है- हे ससुर! आप भोजन करके जाएँ। ससुर कहता है यदि मैं उत्पन्न नहीं हुआ हूँ, तो भोजन कैसे चबाऊँगा-खाऊँगा। इस प्रकार, कहकर दुकान पर गया। पुत्र को सब वार्ता कहता है- तेरी पत्नी दुराचारिणी है और अशिष्ट बोलनेवाली है, इसलिए (तुम) उसको घर से निकालो।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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