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घत्ता
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किं फलु इय सिविणयदंसणेण इय णिसुणिवि णवजलहरसरेण
पाठ
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सुतरंगहॅ गंगहॅ गोउ किर जाव जम्मि ता सुहमइ जिणमइ सयणयले सुरिचत्तहरो सिहरी पवरो पवरंबुणिही पजलंतु सिही पसरम्मि सई वरसुद्धमई णिसि लक्खियउ तसु अक्खियउ लइ जाहुँ वरं जिणचेइहरं पयडंति अलं सिविणस्स हलं भणिओ रमणी इय छंदु मुणी
सुदंसणचरिउ
11
सन्धि 3
3.1
णवकप्पयरू
गच्छइ ॥ 9 ॥ पेच्छइ॥10॥ अमरिंदघरू ।। 11 । सुविराइयओ अवलोइयओ ॥ 12 ॥ गय सिग्घु तहिं थिउ कंतु जहिं ॥ 13 ॥ पभणेइ पई पिय हंसगई ॥14॥ अविलंबझुणी भयवंतमुणी ॥15॥ चलहारमणी चलिया रमणी ॥16 ॥ ||17||
3.2
गय जिणहरु मुणिवरु परिणवेवि जिणदासिऍ णिसि दिउ । गिरिवरु तरु सुरहरु जलहि सिहि इय सिविणंतरु सिट्ठउ ॥18॥
णउ
सुत्तिय सिविणय
होसइ परमेसर कहि खणेण ॥1॥ सुणि सुंदरि पभणिउ मुणिवरेण ॥ 2 ॥
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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