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विन्ध्य पर्वत से नीचे नहीं आता है । सिद्धों का समूह शाश्वत (स्थिति) से रहित नहीं होता है। (7) पापी से पाप का कलंक नहीं छूटता है । कामुक चित्त से कामदेव हटता नहीं है। (8) (इसी प्रकार) (रानी का) जो कदाग्रह ( अनैतिक निश्चय ) ( है ) ( वह) ( उसके ) मन से नहीं हटेगा ( ऐसा लगता है) । यह ही मौक्तिकदाम छन्द ( है ) ।
घत्ता अथवा (ऐसा कहें कि ) जहाँ, जिस प्रकार जिस (व्यक्ति) के द्वारा जैसी (घटनाएँ) उत्पन्न की जायेंगी, वहाँ (वे) अवश्य ही उसी प्रकार, उस ही व्यक्ति के द्वारा अकेले वैसी ही सही जायेंगी ( इसको टाला नहीं जा सकता है ) ।
(1) पाताल में सर्पों का स्वामी सुप्राप्य ( है ), काम से पीड़ित (व्यक्ति) में विरह का सन्ताप स्वाभाविक ( है ) । (2) नये बादल में जल का प्रवाह सरल ( है ), हीरे की खान में हीरे की प्राप्ति आसान ( है ) । (3) कश्मीर में केसरपिंड सुलभ ( है ), मानसरोवर में कमलों का समूह सुलभ ( है ) । (4) द्वीपों के अन्दर नाना प्रकार की व्यापारिक वस्तुएँ सुप्राप्य ( हैं ), पत्थर में सोने का अंश सुलभ ( है ) | ( 5 ) मलय पर्वत से सुगन्ध युक्त वायु का ( चलना ) स्वाभाविक है, व्यापक आकाश में तारों का समूह स्वाभाविक (है)। (6) स्वामी का प्रयोजन पूर्ण किया गया होने पर पुरस्कार आसान ( है ), ईर्ष्या - युक्त व्यक्ति में कषाय स्वाभाविक ( है ) | ( 7 ) सूर्यकान्त मणियों द्वारा अग्नि आसानी से प्राप्त (की जा सकती ) ( है ), उत्तम व्याकरण - शास्त्र में पदों में समास सुलभ ( है ) । (8) आगम में मूल्यों (धर्म) के उपदेश सुलभ ( है ), सुकविजन में बुद्धि की श्रेष्ठता सुलभ ( है ) | ( 9-10 ) मनुष्य अवस्था में प्रिय पत्नी सुलभ (है), किन्तु जिनशासन में अतिपवित्र एक ( चारित्र) ही दुर्लभ ( है ), जिसको (पहले) (मैंने), कभी प्राप्त नहीं किया उस चारित्ररूपी धन को (मैं) कैसे बर्बाद कर दूँ?
घत्ता
इस प्रकार विचार करके जब (सुदर्शन) (जिसका ) दर्शन मनोहर (है) शान्त चित्तवाला हुआ (तो) अभयादेवी लज्जित हुई (और) वह निज मन में बारबार विचार करने लगी।
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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