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________________ चारुदत्त धन-रहित हो गया। (18) (धन-रहित होने के कारण) (चारुदत्त को) (अपने यहाँ से) दूर हटाती हुई (वेश्या) (उससे) विमुख (हुई) (और) (उसके द्वारा) (उसके) बाल काट दिए गए (और) (उसका) वेश दयनीय बना दिया गया। (1920) जो वीर होते हैं, चाहे वह शबरों का (समूह) ही हो, वे वन में रहनेवाले मृगों के समूह को, (जो) वन में घास चरते हैं (और केवल) खड़खड़ आवाज सुनकर निश्चित डर जाते हैं, (उनको) नहीं मारते हैं। (21) (उनको) मूर्ख (व्यक्ति) क्यों मारता है? उनके द्वारा क्या किया गया है? (22) शिकार का प्रेमी चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त नरक में गया। (23) चंचल और निर्लज्ज चोर गुरु, माँ और बाप को (भी) आदरणीय नहीं मानता है। (24) वह उनको (तथा) दूसरों को भी निज भुजाओं के बल से (तथा) जालसाजी से ठगता है। (25) (वह) उपेक्षित मूढ़ (व्यक्ति) संकटरूपी कूए में (गिरता है) (और) (वह) निद्रा और भूख को नहीं पाता है। (26) यह (वह) पद्धडिया छन्द (है), (जिसकी) विद्युल्लेखा नाम से ख्याति (है)। घत्ता - (चोर) पकड़ा जाता है, बाँधकर ले जाया जाता है, चौराहे और मुख्य मार्ग पर (उसके) (चोरी के कार्य को) फैलाकर (वह) दण्डित किया जाता है तथा शहर के बाहरी भाग में काटा जाता है (और) मारा जाता है। 2.11 (1) परद्रव्य में अनुरक्त होने के कारण अंगारक (चोर) के द्वारा सूलियों पर धारण करनेवाला मरण प्राप्त किया गया। (2) इसको जानकर भी मनुष्य उस समय (चोरी करने के समय) मूर्ख (बन जाता है) (और) चोरी करता है। (दुःख है कि वह) (चोरी करने को) नहीं छोड़ता है। (3) लोक में जो अन्य की स्त्री को चाहता है, वह, (उससे) मिलता-जुलता है, (उसकी) प्रशंसा करता है (और) (उसके लिए) लालायित रहता है। (4) जगत् में (अपमान) सहकर (वह) नरक में गिरता है। आदरणीय रावण (भी) अज्ञानी हुआ (और) पर-स्त्री में अनुरक्त हुआ। (5) आखिरकार विनाश को (पहुँच) गया। (इस तरह से) ये सातों व्यसन अनिष्टकर (होते हैं)। अपभ्रंश काव्य सौरभ 73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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