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अप्पर मुयउ करिवि दरिसावमि दीसइ दिवसि मिलिय पुरलोएं
ओसहत्थु लुउ पुच्छ-सकण्णउ जीवेसमि अपुच्छु विणु कण्णहिँ वोल्लइ अवरु एक्कु कामुयजणु पाहणु लेवि दंत किर चूरइ खंडियपुच्छ-कण्ण मण्णिय तिणु चिंतवि मुक्कु धाउ जव-पाणे मारिउ ताम जाण कयनाएं इय विसयंधु मूदु जो अच्छइ
किर वणु पुणु वि निसागमि पावमि॥6॥ एक्कें नरेंण पवड्ढियरोएं ॥7॥ चिंतइ जंबुउ अज्ज वि धण्णउ ॥8॥ एक्कबार जइ छुट्टमि पुण्णहिँ ॥9॥ गेहमि दन्तु करमि वसि पियमणु॥10॥ जाणिवि जंबुउ हियइ बिसूरइ ॥11॥ दुक्करु जीवियास दंतहिँ विणु ॥12॥ लइउ कंठें हरिसरिसें साणें ॥13॥ खद्धउ मिलिवि सुणहसमवाएं ॥14॥ कवणभंति सो पलयों गच्छइ ॥15॥
10.11
जंबूसामि कहाणउ साहइ गउ परतीरें पुहइधणतुल्लउ चडिवि पोइ लंघइ सायरजलु जा वेलाउलु पावमि तहिं पुणु हरि-करि किणवि भंडु नाणाविहु अह हत्थाउ गलिउ दरनिद्दों धाहावइ तरियहु दीहरगिरु
वाणिउ को वि परोहणु वाहइ॥1॥ एक्कु जि रयणु किणिउ बहुमोल्लउ॥2॥
आवंतउ चिंतइ मणे मंगलु॥3॥ विक्कमि ऍउ माणिक्कु महागुणु॥4॥ घरु जाएसमि निवसंपयनिहु॥5॥ पडिउ रयणु तं मज्झे समुद्दहों॥6॥ हा हा जाणवत्तु किज्जउ थिरु॥7॥
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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