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कवि कनकामर
अपभ्रंश वाङ्मय के प्रतिनिधि कवियों की श्रृंखला में एक नाम मुनि कनकामर का भी आता है।
कनकामर का जन्म ब्राह्मणवंश के चन्द्रऋषि गोत्रीय परिवार में हुआ था। जैनधर्म से प्रभावित होकर इन्होंने जैनधर्म स्वीकार किया और बाद में दिगम्बर मुनि-दीक्षा धारण की। इनका बाल्यावस्था का नाम अज्ञात है। मुनि दीक्षा के बाद ये 'मुनि कनकामर' के नाम से जाने गये, इसी नाम से ये ज्ञात और विख्यात है।
__इनका स्थितिकाल ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध है। कनकामर ने अपभ्रंश भाषा में एक खण्डकाव्य ‘करकण्डचरिउ' की रचना की। ग्रन्थ की रचना 'आसाइय' नगरी में की गई। पण्डित मंगलदेव इनके गुरु थे।
मुनि कनकामर अपभ्रंश के अतिरिक्त कई भाषाओं के विद्वान् थे।
करकण्डचरिउ - यह कवि की एकमात्र रचना है। कथा का प्रमुख पात्र ‘करकण्डु' है, समूचे काव्य में इसी के चरित्र का विशद वर्णन है।
‘करकण्डु' की कथा जैन-साहित्य में तो प्रसिद्ध है ही, बौद्ध-साहित्य में भी इसका पर्याप्त वर्णन है। दोनों ही परम्पराओं/धर्मों/साहित्यों में करकण्डु' को 'प्रत्येकबुद्ध' माना गया है।
‘करकण्डचरिउ' 10 सन्धियों का काव्य है। इसमें श्रुतपंचमी के फल तथा पंचकल्याणक विधि का वर्णन है। ‘करकण्डचरिउ' का अपभ्रंश-काव्य परम्परा में एक विशिष्ट स्थान है। यह रचना इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है कि अन्य विशेषताओं के साथ इसमें दसवीं शताब्दी के जैनधर्म और संस्कृति के स्वरूप का तथा मन्दिरों के शिल्प का अंकन है।
'करकण्डचरिउ' अपभ्रंश साहित्य की वीर-शृंगार और शान्त रसयुक्त एक अनूठी रचना है।
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जो केवलज्ञान प्राप्त कर बिना धर्मोपदेश दिये ही मोक्ष चले जाते हैं उन्हें प्रत्येकबुद्ध कहते हैं।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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