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कवि नयनन्दि मुनि
अपभ्रंश के जाने-माने रचनाकारों में से एक हैं- कवि नयनन्दि मुनि। नयनन्दि मुनि जैन आचार्य श्री कुन्दकुन्द की परम्परा में हुए हैं। कवि नयनन्दि मुनि काव्यशास्त्र में निष्णात; प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश के उच्चकोटि के विद्वान् और छन्द शास्त्र के ज्ञाता थे।
इनका स्थितिकाल विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी माना गया है। कवि नयनन्दि की दो कृतियाँ हैं- 1. सुदंसणचरिउ और 2. सयलविहिविहाणकव्व। इनमें से 'सुदंसणचरिउ' की रचना कवि नयनन्दि ने अवन्ती देश की धारा-नगरी के जिनमन्दिर में राजा भोज के शासनकाल में विक्रम सम्वत् 1100 में की थी।
सुदंसणचरिउ - यह अपभ्रंश भाषा का एक चरितात्मक खण्डकाव्य है। इसमें सुदर्शन केवली के चरित्र का अंकन किया गया है। सुदर्शन का चरित्र जैन साहित्य का बहुश्रुत तथा लोकप्रिय कथानक रहा है।
सयलविहिविहाणकव्व - कवि की दूसरी कृति सयलविहिविहाणकव्व एक विशिष्ट काव्य है। इस काव्य में वस्तु-विधान और उसकी सालंकार एवं सरल प्रस्तुति की गई है। इसका प्रकाशन अभी सम्भव नहीं हो सका।
कविश्री नयनन्दि की भाषा शुद्ध साहित्यिक अपभ्रंश है। इनकी भाषा में सुभाषित और मुहावरों के प्रयोग से प्रांजलता मुखर है तो स्वाभाविकता व लालित्य का समावेश भी है। कवि की रचना 'सुदंसणचरिउ' का छन्दों की विविधता एवं विचित्रता की दृष्टि से विशिष्ट महत्त्व है। इस रचना में कई छन्द नये हैं। इसमें लगभग 85 छन्दों का प्रयोग हुआ है, इतने छन्दों का प्रयोग अपभ्रंश के अन्य किसी कवि ने नहीं किया।
विशेष अध्ययन के लिए सहायक ग्रन्थ -
1. सुदंसणचरिउ - मुनि नयनन्दि, सम्पादक-अनुवादक - डॉ. हीरालाल जैन, प्रकाशक - प्राकृत-जैन शास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान वैशाली, बिहार।
- 2. जैनविद्या-7 - नयनन्दि विशेषांक, अक्टूबर, 1987, प्रकाशक - जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी, दिगम्बर जैन नसियाँ भट्टारकजी, सवाई रामसिंह रोड, जयपुर - 04
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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