________________
इंधरणकज्जें
कप्पयरु
मूलहो
[(इंधण)-(कज्ज) 2/1] (कप्पयरु) 1/1 (मूल) 5/1 (खंड-खंडिअ) भूकृ 1/1 (त) 3/1 स
ईंधन के प्रयोजन से कल्पतरु मूल से काटा गया उसके द्वारा
खंडिउ तेण
श्रीवास्तव. अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 148
अपभ्रंश काव्य सौरभ
376
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org