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विसय
सुह
सुखों को
हियडइ
भाउ
धरंति सालिसित्थु जिम
(विसय) 6/2
विषयों के (सुह) 2/2 (हिय+अडअ-हियडअ) 7/1 हृदय में 'अडअ' स्वार्थिक (भाअ) 2/1
आसक्ति को (धर) व 3/2 सक
रखते हैं (सालिसित्थ) 1/1
सालिसित्थ अव्यय
जैसे (वप्पुडा+अउ-वप्पुडउ) 1/1 वि (दे.) बेचारा (णर) 1/2
मनुष्य (णरय') 6/2
नरकों में (णिवड) व 3/2 अक
गिरते हैं
वप्पुडउ
पर
णरयह णिवडंति
5.
आयई
आपत्ति में
अडवड
अटपट
वडवडइ
पर
रंजिज्जइ
लोउ
(आयअ) 7/1 (अडवड) 1/1 वि (वडवड) व 3/1 अक अव्यय (रंज-रंजिज्ज) व कर्म 3/1 सक (लोअ) 1/1 [(मण)-(सुद्ध) 7/1 वि] [(णिच्चल) वि-(ठिअ) 7/1 वि] (पाव) व कर्म 3/1 सक [(पर) वि-(लोअ) 1/1]
मणसुद्ध णिच्चलठियई
बड़बड़ाता है किन्तु खुश किया जाता लोक मन के कयाषरहित होने पर अचलायमान और दृढ़ होने पर प्राप्त किया जाता है पूज्यतम जीवन
पाविज्जइ परलोउ
धंधई
(धंध) 7/1
धन्धे में
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 146 श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 151
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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