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मुणि
जान
सण्णाणे
स्वबोध के द्वारा
णाणमउ
ज्ञानमय
(मुण) विधि 2/1 सक (स-प्रणाण) 3/1 (णाणमअ) 1/1 वि (ज) 1/1 सवि [(परम)+(अप्प)+ (सहाउ)] [(परम) वि-(अप्प)-(सहाअ) 1/1]
जो
परमप्प-सहाउ
परमात्म-स्वभाव
मूर्च्छित
वियक्खणु
जाग्रत
बंभु
आत्मा
परु
परम
अप्पा
ति-विह
आत्मा तीन प्रकार की होती है देह को
हवेइ
(मूढ) 1/1 वि (वियक्खण) 1/1 वि (बंभ) 1/1 (पर) 1/1 वि (अप्प) 1/1 (तिविह) 1/1 वि (हव) व 3/1 अक (देह) 2/1 अव्यय (अप्प) 2/1 (ज) 1/1 सवि (मुण) व 3/1 सक (त) 1/1 सवि (जण) 1/1 (मूढ) 1/1 वि (हव) व 3/1 अक
ही
अप्पा
आत्मा
जो
मुणइ
मानता है
सो
वह
जणु
मनुष्य मूर्च्छित होता है
4.
देह-विभिण्णउ
देह से भिन्न
णाणमउ
ज्ञानमय
[(देह)-(विभिण्णअ) 2/1 वि 'अ' स्वार्थिक] (णाणमअ) 2/1 वि (ज) 1/1 सवि [(परम)+ (अप्पु)] [(परम) वि-(अप्प) 2/1]
परमप्पु.
परम आत्मा को
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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