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(पडिहा) व 3/1 अक
पडिहाइ एम्वइ
अव्यय
दिखाई देता है इसी प्रकार सुख को भोगने के लिए
सुहु
भुजणहं
(सुह) 2/1 (भुज+अणह) हेक (मण) 1/1
मणु
मन
पर
अव्यय
किन्तु
भुञ्जणहिं
(भुज+अणहिं) हेक अव्यय (जा) व 3/1 अक
भोगने के लिए नहीं उत्पन्न होता है
जाइ
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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