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णं अत्थमिउ दिवायरु दुक्खें रत्त-पत्त तरु पवणाकम्पिय
णं पइसरइ रयणि सइँ सुक्खें॥7॥ 'केण वि बहिउ गिम्भु णं जम्पिय॥8॥
घत्ता
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तेहएँ कालें भयाउरएँ वेण्णि मि वासुएव-वलएव। तरुवर-मूलें स-सीय थिय जोगु लएविणु मुणिवर जेम॥9॥
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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