________________
अइणिविडजडत्तविणासणेण
कलिमलु णिड्डहइ
[(अइ) वि-(णिविड) वि-(जडत्त) वि- (विणासण) 3/1 वि] (कलिमल) 2/1 (णिड्डह) व 3/1 सक (हुआसण) 3/1
अति घने जड़त्व का विनाश करनेवाली पाप (रूपी) मल को जला देता है (देगा) अग्नि से
हुआसणेण
सुन्दर
मनोहर
सुंदरु मणहरु गुणमणिणिकेउ जुवईयणवल्लहु मयरकेउ
(सुंदर) 1/1 वि (मणहर) 1/1 वि [(गुण)-(मणि)-(णिकेअ) 1/1] [(जुवई)-(यण)-(वल्लह) 1/1 वि] (मयरकेउ) 1/1
गुणरूपी मणियों का घर युवती वर्ग का प्रिय प्रेम का देवता
9.
णियकुलमाणससररायहंसु
णिम्मच्छरु बुहयणलद्धसंसु
[(णिय) वि-(कुल)-(माणससर)(रायहंस) 1/1] (णिम्मच्छर) 1/1 वि [(बहु-(यण)-(लद्ध) भूकृ अनि (संसा-संस) 1/1 वि]
अपने कुलरूपी मानसरोवर का राजहंस ईर्ष्यारहित ज्ञानी वर्ग की प्रशंसा प्राप्त कर ली गई
10.
उपसर्ग
उवसग्गु सहेवि हवेवि
सहन करके
होकर
साहु
(उवसग्ग) 2/1 (सह+एवि) संकृ (हव+एवि) संकृ (साहु) 1/1 (पाव) भवि 3/1 सक (झाण) 3/1 (मोक्ख)-(लाह) 2/1
पावेसइ झाणे
साधु प्राप्त करेगा ध्यान के द्वारा मोक्ष के लाभ को
मोक्खलाहु
11.
जिणु
मुणि
(जिण) 2/1 (मुणि) 2/1 (णव+एवि) संकृ
जिनेन्द्र को मुनिवर को प्रणाम करके
णवेवि
अपभ्रंश काव्य सौरभ
288
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org