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________________ अक्खियउ पभणेइ पई पिय हंसगई 15. लइ हुँ वरं जिणचेइहर अविलंबझुणी 16. भयवंतमुणी पयडंति अलं सिविणस्स हलं चलहारमणी चलिया रमणी 17. भणिओ रमणी སྠཽ 。 ཤྲཱ ལླ, ཨྰཿ छंदु मुणी 285 Jain Education International अक्ख अक्खिय· अक्खियअ भूक 1 / 1 अ. स्वा. → ( पभण) व 3 / 1 सक (पइ) 1 / 1 ( पिय- पिया) 8/1 [[ ( हंस) - (गइ ) 8 / 1 ] वि] अव्यय (जा) व 1/2 सक अव्यय [ ( जिण) - (चेइहर) 2 / 1] [[(अविलंब) वि- (झुणि) 1 / 2 ] वि] (भण) भूकृ 1 / 1 ( रमणी) 1 / 1 (इया) 1 / 1 सवि (छंद) 1/1 (मुणि) 6/1 ( गय) भूक 1/2 अनि कहे गये कहता है ( कहा ) पति For Private & Personal Use Only हे प्रिया हंस की चालवाली [ ( भयवंत) वि - ( मुणि) 1 / 2 ] ( पयड) व 3 / 2 सक अव्यय (fafau) 6/1 (हल) 2/1 [[ (चल) - (हार) - (मणि) 1 / 2 ] वि] (चल - चलिय- (स्त्री) चलिया) भूकृ 1 / 1 चल पड़ी ( रमणी) 1 / 1 रमणी अच्छा, ठीक जाते हैं (चलते हैं) श्रेष्ठ जिन - चैत्यघर बिना विलम्ब के (सहज) ध्वनि (शब्द) पूज्य मुनि प्रकट करते हैं ( कर देंगे ) पूर्णरूप से स्वप्न (समूह) का हल हार की मणियाँ लहरानेवाली कहा गया रमणी यह छंद मुनि के द्वारा गये अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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