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अक्खियउ
पभणेइ
पई
पिय
हंसगई
15.
लइ
हुँ
वरं
जिणचेइहर
अविलंबझुणी
16.
भयवंतमुणी
पयडंति
अलं
सिविणस्स
हलं
चलहारमणी
चलिया
रमणी
17.
भणिओ
रमणी
སྠཽ 。 ཤྲཱ ལླ, ཨྰཿ
छंदु
मुणी
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अक्ख अक्खिय· अक्खियअ
भूक 1 / 1 अ. स्वा.
→
( पभण) व 3 / 1 सक
(पइ) 1 / 1
( पिय- पिया) 8/1
[[ ( हंस) - (गइ ) 8 / 1 ] वि]
अव्यय
(जा) व 1/2 सक
अव्यय
[ ( जिण) - (चेइहर) 2 / 1] [[(अविलंब) वि- (झुणि) 1 / 2 ] वि]
(भण) भूकृ 1 / 1
( रमणी) 1 / 1
(इया) 1 / 1 सवि
(छंद) 1/1 (मुणि) 6/1
( गय) भूक 1/2 अनि
कहे गये
कहता है ( कहा )
पति
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हे प्रिया
हंस की चालवाली
[ ( भयवंत) वि - ( मुणि) 1 / 2 ]
( पयड) व 3 / 2 सक
अव्यय
(fafau) 6/1
(हल) 2/1
[[ (चल) - (हार) - (मणि) 1 / 2 ] वि]
(चल - चलिय- (स्त्री) चलिया) भूकृ 1 / 1 चल पड़ी
( रमणी) 1 / 1
रमणी
अच्छा,
ठीक
जाते हैं (चलते हैं)
श्रेष्ठ
जिन - चैत्यघर
बिना विलम्ब के (सहज) ध्वनि (शब्द)
पूज्य मुनि
प्रकट करते हैं ( कर देंगे )
पूर्णरूप से
स्वप्न (समूह) का
हल
हार की मणियाँ लहरानेवाली
कहा गया
रमणी
यह
छंद
मुनि के द्वारा
गये
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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