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________________ आसान सुलहउ गयणंगणे उडुणिहाउ (सुलहअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (गयणंगण) 7/1 [(उडु)-(णिहाअ) 1/1] व्यापक आकाश में तारों का समूह 6. सुलहउ आसान पहुपेसणे कए पसाउ (सुलहअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक [(पहु)-(पेसण) 7/1] (कअ) भूकृ 7/1 अनि (पसाअ) 1/1 (सुलहअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (ईसा-स) 7/1 वि (जण) 7/1 (कसाअ) 1/1 स्वामी का प्रयोजन पूर्ण किया गया होने पर पुरस्कार स्वाभाविक ईर्ष्यायुक्त व्यक्ति में सुलहउ ईसासे जणे कसाउ कषाय सुलहउ रविकंतमणिहिँरविकंतमणिहिं (सुलहअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक रविकंतमणि) 3/2 आसानी से प्राप्त (है) सूर्यकान्त मणियों द्वारा हुयासु सुलहउ वरलक्खणे पयसमासु (हुयास) 1/1 (सुलहअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक [(वर)-(लक्खण) 7/1] [(पय)-(समास) 1/1] अग्नि सुलभ उत्तम व्याकरणशास्त्र में पदों में समास 8. सुलहउ आगमे धम्मोवएसु सुलभ आगम में (सुलहअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (आगम) 7/1 [(धम्म)+(उवएसु)] [(धम्म)-(उवएस) 1/1] (सुलहअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक [(सुकई)-(यण) 7/1] [(मइ)-(विसेस) 1/1] सुलहउ सुकईयणे मइविसेसु मूल्यों (धर्म) के उपदेश सुलभ सुकवि जन में बुद्धि की श्रेष्ठता 1. समास के कारण दीर्घ हुआ है (हेम प्राकृत व्याकरण 1-4) अपभ्रंश काव्य सौरभ 280 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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