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________________ 2. सुलहउ णवजलहरे जलपवाहु सुलहउ वइरायरे वज्जलाहु 3. सुलहउ कस्सीए घुसिणपिंडु सुलह माणससरे कमलसंडु 4. सुलहउ दीवंतरे विविहभंडु सुलहउ पाहाणे हिरणखंडु 5. सुलहउ मलयायले सुरहिवाउ 1. 279 ( सुलहअ ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक [ ( णव) वि - (जलहर) 1 / 1] Jain Education International [ (जल) - ( पवाह ) 1 / 1] ( सुलहअ ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक [(वर) + (आयरे)] [ ( वइर) - (आयर) 7 / 1] [ ( वज्ज) - (लाह) 1 / 1] ( सुलहअ ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक (कस्सीरअ ) 7/1 'अ' स्वार्थिक [ ( घुसिण) - (पिंड) 1 / 1] ( सुलहअ ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक ( माणससर) 7/1 ( कमल) - (संड) 1/1 ( सुलहअ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक ( पाहाण) 7/1 [(हिरण्ण) - (खंड) 1 / 1] (सुलहअ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक [(मलय) + (अयले )] [ ( मलय) - ( अयल) 1 7 / 1] [ ( सुरहि) वि - (वाउ) 6 / 1] सरल नये बादल में जल का प्रवाह आसान हीरे की खान में For Private & Personal Use Only हीरे की प्राप्ति ( सुलहअ ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक सुप्राप्य [ ( दीव) + (अंतरे ) ] [ ( दीव) - (अंतर) 7/1] द्वीपों के अन्दर [ ( विविह) - ( भंड) 1 / 1] सुलभ कश्मीर में केसरपिंड सुलभ मानसरोवर में कमलों का समूह नाना प्रकार की व्यापारिक वस्तुएँ सुलभ पत्थर में सोने का अंश स्वाभाविक कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-136) मलय पर्वत से सुगन्धयुक्त वायु का अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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