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चित्तु चहुटु
6.
ण
फिट्टइ
विझि
महाकरिजूहु
ण
फिट्टइ
सासए
सिद्धसमूह
7.
ण
फिट्टए
पाविहे
पावकलंकु
ण
फिट्टए
झ
8.
ण
फिट्टए
आय
जो
चित्
असगाहु
छंदु
वि
मोत्तियदामउ
एहु
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(चित्त) 1/1
(चट्ट) 1/1 वि
अव्यय
(फिट्ट) व 3 / 1 अक
(विंझ ) ' 7/1
[ (महा) वि - ( करि ) - ( जूह) 1 / 1 ]
अव्यय
(फिट्ट) व 3 / 1 अक
(सासअ ) 7/1
[ ( सिद्ध) - (समूह) 1 / 1]
अव्यय
(फिट्ट) व 3 / 1 अक
(पावि) 5 / 1
[ (पाव) - ( कलंक) 1 / 1]
अव्यय
(फिट्ट) व 3 / 1 अक
(कामुय ) - (चित्त) 7/1
( झसंक) 1/1
अव्यय
(फिट्ट) व 3 / 1 अक
(आय) 5 / 1
(ज) 1 / 1 सवि
( असगाह ) 1 / 1
(सुछंद) 1/1
अव्यय
(मोत्तियदामअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक (अ) 1 / 1 सवि
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मन
लगा हुआ
नहीं
नीचे आता है
विन्ध्य पर्वत से
महान हाथियों का समूह
नहीं
रहित होता है।
शाश्वत से
सिद्धों का समूह
नहीं
छूटता
पापी से
पाप का कलंक
नहीं
हटता है
कामुक चित्त से
कामदेव
है
नहीं
हटता है (हटेगा )
मन से
जो
कदाग्रह
छंद
ही
मौक्तिकदाम
.
यह
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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