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छलेण
25.
भयकूवि
छूदु
णउ
द्दिभुक्खु
पावेइ
मूदु
26.
पद्धडिय
एह
सुपसिद्धी
णामें
विज्जलेह
27.
पावेज्जइ
बंधेवि
णिज्जइ
वित्थारेवि
रहे
चच्चरे
दंडिज्जइ
तह
खंडिज्जइ
मारिज्जइ.
पुरवाहिरे
1.
2.
269
(त) 1 / 1 सवि
(छल) 3 / 1
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[ (भय) - ( कूव) 7 / 1 ] (छुढ) भूक अनि 1 / 1 वि
अव्यय
[ (णि) - (भुक्ख ) 2 / 1]
(पाव) व 3 / 1 सक
( मूढ) 1 / 1 वि
(पद्धडिया) 1/1
(एआ) 1/1 सवि
(सुपसिद्धि) 1/1
( णाम) 3 / 1
(विज्जलेहा ) 1 / 1
(पाव) ' व कर्म 3 / 1 सक
(बंध + एवि ) संकृ
(णी) व कर्म 3 / 1 सक
( वित्थार + एवि ) संकृ
(रह) 7/1
(चच्चर) 7/1
(दंड) व कर्म 3 / 1 सक
अव्यय
(खंड) व कर्म 3 / 1 सक
(मार) व कर्म 3 / 1 सक
[ (पुर) - ( वाहिर ) 7 / 1 वि]
प्र-आप्-पाव = पकड़ लेना, (आप्टे, संस्कृत-हिन्दी कोष ) ।
टिप्पण, सुंदसणचरिउ, 2.10, पृष्ठ 268
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वह
जालसाजी से
संकटरूपी कुए में
डाला हुआ
नहीं
निद्रा और भूख को
पाता है
मूढ़
पद्धडिया छन्द
यह
ख्याति
नाम से
विद्युल्लेखा
पकड़ा जाता है
बाँधकर
ले जाया जाता है।
फैलाकर
मुख्य मार्ग चौराहे पर
दण्डित किया जाता है
तथा
काटा जाता है।
मारा जाता है
शहर के बाहरी भाग में
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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