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3.
विसय
वि
ण
भंति
जम्मंतरकोडिहिँ
दुहु
जणंति
4.
चिरु
रुद्ददत्तु
णिवडिउ
यावे
विसयजुत्तु
5.
वदु
आयरेण
जो
ླ 4,
रमइ
जूउ
बहुफ्फ
6.
सो
च्छोहतु
आहण
जणणि
सस
धरिणि
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(farer) 1/2
अव्यय
अव्यय
(sifa) 1/1
[ ( जम्म) + (अन्तर) + (कोडिहिँ) ] [ ( जम्म) - ( अन्तर) - (कोडि) 7 / 2 वि]
(दुह) 2/1
(जण) व / 32 सक
अव्यय
(रुदत्त) 1 / 1
(णिवड- णिवडिअ ) भूकृ 1 / 1
[(णरय) + (अण्णवे)]
[ ( णरय) - ( अण्णव) 7 / 1]
( विसय) - ( जुत्त) भूकृ 1 / 1 अनि
(वढ) 1 / 1 वि
क्रिविअ
(ज) 1 / 1 सवि
(रम) व 3 / 1 सक
(जूअ ) 2/1
[ ( बहु) वि - ( डफ्फर) 3 / 1 ]
(त) 1 / 1 सवि
[ ( च्छोह) - ( जुत्त) भूक 1 / 1 अनि ]
( आहण ) व 3 / 1 सक
( जणणी) 2/1
( ससा ) 2/1
(front) 2/1
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विषय
किन्तु
नहीं
सन्देह
करोड़ों जन्मों के अवसर पर
दुःख
उत्पन्न करते ( रहते हैं
दीर्घकाल के लिए
रुद्रदत्त
पड़ा
नरकरूपी समुद्र में
विषयों में लीन
मूर्ख
उत्साहपूर्वक
जो
खेलता है
जुआ
?
वह
रोष से युक्त हुआ
कष्ट देता है
माता
बहन
पत्नी
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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