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________________ ताम जाण कयनाए अव्यय उस समय (जाण) विधि 2/1 सक समझो (कयन- (स्त्री) कयना) 3/1 मार डालने के कारण (खद्धअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ',स्वार्थिक खा लिया गया (मिल+इवि) संकृ मिलकर [(सुणह)-(समवाअ) 3/1] कुत्ते के समूह द्वारा खद्धउ मिलिवि सुणहसमवाएं 15. इय अव्यय इस प्रकार विषयों में अन्धा विसयंधु मूढ़ अच्छा [(विसय)+(अंधु)] [(विसय)- (अंध) 1/1 वि] (मूढ) 1/1 वि (ज) 1/1 सवि (अच्छ) व 3/1 अक (कवण) स-(भंति) 1/1 (त) 1/1 सवि (पलय) 6/1 (गच्छ) व 3/1 सक रहता है क्या, सन्देह कवणभंति वह पलयहो। नाश को पाता है गच्छइ 10.11 जंबूसामि कहाणउ साहइ वाणिउ कोवि. (जंबूसामि) 1/1 जंबूस्वामी (कहाणअ) 2/1 कथानक (साह) व 3/1 सक कहता है (कहते हैं) (वाणिअ) 1/1 वणिक (क) 1/1 सवि (परोहण) 2/1 जहाज (वाह) व 3/1 सक ले जाता है (ले गया) कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) कोई परोहणु वाहइ 1. 257 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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