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________________ कव्वाडहो धावइ भोयणमत्तु किलेसें (कव्वाड) 4/1 (धाव) व 3/1 सक [(भोयण)-(मत्त) 2/1] क्रिवि (पाव) व 3/1 सक कबाड़ीपन के लिए भागता है (था) भोजनमात्र दुःखपूर्वक पाता है (था) पावइ भुत्तसेसु दिवसेसु कुछ दिनों में पवनउ रूवउ [(भुत्त)-(सेस) 1/1 वि] भोजन में से बचा हुआ (दिवस) 7/2 (पवन्नअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक प्राप्त किया गया (रूवअ) 1/1 रुपया (एक्क) 1/1 वि एक (रोक्क) 1/1 वि (दे) रोकड़ी (संपन्नअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक प्राप्त (हासिल) किया गया एक्कु रोक्कु संपन्नड 5. महिलसहाएँ रहसे चड्डिउ कलसे [(महिल-महिला)-(सहाअ) 3/1] (रहस) 7/1 (चड्ड-चड्डिअ) भूकृ 1/1 (कलस) 7/1 (छुह+एवि) संकृ (धरायल) 7/1 (गड्ड-गड्डिउ) भूकृ 1/1 पत्नी के सहयोग से एकान्त में चढ़ा गया कलश में छुहेवि रखकर धरती में धरायले गड्डिउ गाड़ दिया गया अह रविगहणे कयावि अव्यय [(रवि)-(गहण) 7/1] अव्यय (विहाण) 7/1 (चल-चलिय) 1/2 बाद में सूर्यग्रहण के अवसर पर किसी भी समय प्रभात में चले विहाण. चलियई 1. 2. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 146 श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 146 अपभ्रंश काव्य सौरभ 246 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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