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________________ सिंचहु पाणिएण (सिंच) विधि 2/2 सक (पाणिअ) 3/1 छिड़काव करो पानी से जुज्झह विण्णि युद्ध करें दोनों (जुज्झ) विधि 2/2 सक (वि) 1/2 वि अव्यय [णिव)-(मल्ल) 1/2] वि णिवमल्ल ताम अव्यय राजारूपी, पहलवान तब तक एक के द्वारा उठा लिया जाता है एक्केण तुलिज्जइ (एक्क) 3/1 वि (तुल+इज्ज) व कर्म 3/1 सक (एक्क) 1/1 वि एक्कु एक जाम अव्यय जब तक अवरोप्परु जिणिवि परक्कमेण (अवरोप्पर) 2/1 वि (जिण+इवि) संकृ (परक्कम) 3/1 (गेण्ह) व 2/2 सक [(कुल)-(हर)-(सिरी) 2/1] (विक्कम) 3/1 एक दूसरे को जीतकर शूरवीरता से ग्रहण करें (करता है) पितृ-गृह के वैभव को सामर्थ्य से गेण्हहु कुलहरसिरि विक्कमेण तणुसोहाहसियपुरंदरेहि (तणु)-(सोहा)-(हसिय) भूकृ-(पुरंदर') 6/1 शरीर की, शोभा के कारण, उपहास किया गया, इन्द्र का उस समय ता अव्यय चिंतिउ विचारा गया दोहि दोनों (चित-चिंतिअ) भूकृ 1/1 (दो) 3/2 वि अव्यय (सुन्दर) 3/2 भी सुन्दरेहि सुन्दर (राजाओं) द्वारा क्या (क) 1/1 सवि श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 157 1. 243 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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