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पाठ -8 महापुराण
सन्धि - 17
17.7
कारणि
वसुमइहि
सेण्णइं
जाम
अव्यय (कारण) 3/1 (वसुमइ) 6/1 (सेण्ण) 1/2 अव्यय (हण) व 3/2 सक (परोप्पर) 2/1 वि (अन्तर) 7/1 अव्यय (पइट्ठ) भूक 1/2 अनि अव्यय (मंति) 1/2 (चव) व 3/2 सक (समुभ+इवि) संकृ [(णिय) वि-(कर) 2/1]
अति शीघ्र प्रयोजन से धरती के सेनाएँ ज्योंही प्रहार करती हैं एक दूसरे पर बीच में तब ही (त्योंही) प्रविष्ट हुए
हणंति परोप्परु अंतरि
ताम
पइट्ठ
तहि
वहाँ
मंति
मंत्री
चवंति समुन्भिवि णियकर
कहते हैं (कहा) ऊँचा करके अपना हाथ
1. 2.
श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 144 श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 157
235
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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