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________________ तब विणिग्गओ गया णियपुरं गओ तम्मि अव्यय (दूअ) 1/1 (विणिग्गअ) भूक 1/1 अनि [(णिय) वि-(पुर) 2/1] (गअ) भूक 1/1 अनि (त) 7/1 स [(णिव)-(णिवास) 2/1] (त) 1/1 स (विण्णव) व 3/1 सक (सायर) 1/1 वि (पणव-पणविअ) भूकृ 1/1 (महीस) 1/1 णिवणिवासं ... ke. It . . निजनगर को गया वहाँ पर राजा के घर वह/उसने कहता है (कहा) आदरसहित प्रणाम किया गया पृथ्वी का ईश विण्णवइ सायरं पणविङ महीसं विसमु देव बाहुबलि णरेसरु रह (विसम) 1/1 (देव) 8/1 (बाहुबलि) 1/1 (णरेसर) 8/1 (णेह) 2/1 अव्यय (संध) व 3/1 सक (संघ) व 3/1 सक (गुण) 7/1 (सर) 2/1 खतरनाक हे देव बाहुबलि हे नरेश्वर स्नेह नहीं रखता है रखता है धनुष की डोरी पर संधइ संधइ बाण . . . . . . कज्जु कार्य ण नहीं (कज्ज) 2/1 अव्यय [(परियर) 2/1, (बंध) व 3/1 सक] (संधि) 2/1 बंधइ परियरु-परियरु बंधइ । संधि कमर कसता है संधि अव्यय नहीं 231 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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