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अव्यय
क्या
मंदरगिरिसिहरि समच्चिउ
[(मंदर)- (गिरि)-(सिहर) 7/1] (समच्च) भूक 1/1
सुमेरु पर्वत के शिखर पर पूजा गया
क्या
तहु
उसके आगे
अग्गइ
सुरवइ
अव्यय (त) 6/1 स अव्यय (सुरवइ) 1/1 (णच्च-णच्चिअ) भूकृ 1/1 [(सिरि)+(सइरिणी)+ (यइ)] [(सिरि)-(सइरिणी) 6/1'] यइ-अइ%अव्यय
णच्चिउ
नाचा लक्ष्मी, स्वेच्छाचारिणी
सिरिसइरिणिय
के द्वारा,
अरे
कि
अव्यय
क्यों
रोमंचिउ
(रोमंचिअ) 1/1 वि
पुलकित
7.
चक्कु
चक्र
दण्ड
वह
तासु
उसके लिए
जि
सारउ
(चक्क) 1/1 (दंड) 1/1 (त) 1/1 सवि (त) 4/1 स अव्यय (सार-अ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (अम्ह) 4/1 स अव्यय (ण) 1/1 स (कुंभार) 6/1 परसर्ग
महत्त्वपूर्ण मेरे लिए किन्तु
वह
कुंभार
कुम्हार का सम्बन्धार्थक
केरउ
कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)
2.
221
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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