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सीसइ
(सीसइ) व कर्म 3/1 सक अनि
कहा जाता है
वितु
चित्त को समत्व में
समत्तणि णेय
नहीं
णियत्तइ
(चित्त) 2/1 (समत्तण) 7/1 अव्यय (णियत्त) व 3/1 सक (पुत्त) 2/1 (कलत्त) 2/1 (वित्त) 2/1 (सं-चिंत) व 3/1 सक
कलत्तु
लगाता है पुत्र को (की) स्त्री (पत्नी) की धन की अत्यन्त चिन्ता करता है
वितु
संचित
9.
मरइ
रसणफंसणरसदड्डउ
मे-मे-मे
(मर) व 3/1 अक [(रसण)-(फंसण)-(रस)-(दड्डअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक] अव्यय (कर) वकृ 1/1 अव्यय (मेंढअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक
मरता है रसना (जिह्वा) और स्पर्शन इन्द्रियों के रस से सताया हुआ मे-मे (शब्द) करता हुआ जिस प्रकार
करन्तु
जिह
मेंढउ
मेंढा
10.
खज्जइ
पलयकालसद्लें डज्झइ दुक्खहुयासणजालें
(खज्ज) व कर्म 3/1 सक अनि [(पलय)-(काल)-(सठूल) 3/1] (डज्झइ) व कर्म 3/1 सक अनि [(दुक्ख)-(हुयासण)-(जाल) 3/1]
खाया जाता है प्रलयकालरूपी बाघ के द्वारा जलाया जाता है दुःखरूपी अग्नि की ज्वाला के द्वारा
विलाव
11. मंजरु कुंजरु महिसउ
(मंजर) 1/1 (कुंजर) 1/1 (महिस-अ) 1/1 'अ' स्वार्थिक
हाथी
भैंसा
1.
कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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