________________
बहुयरा जणमणोहरा
विकुमारवा
दुमदलललियतोरणं
रसियवारणं
छिण्णभूमिदेसं
2.
हिं
भणिय
ते
विणउ
करेप्प
सामिसाल
पणवेप्पिणु
3.
सुरणरविसहरभय
ૐ
जणेरी
करहु
केर
राहु
केरी
4.
पणवहु
किं
1.
अपभ्रंश काव्य सौरभ
( बहुयर) 1 / 1
[ ( जण ) - (मणोहर) 1 / 1 वि] [(णिव) - (कुमार) - (वास) 2 / 1 ]
[[ (दुम) - (दल) - (ललिय) - (तोरण) 2/1] fa]
Jain Education International
[[ (रसिय) - ( वारण) 2 / 1 ] वि]
[[ ( छिण्ण) भूक अनि- (भूमि) - (देस) 2/1] fa]
(त) 3/2 स
(भण भणिय) भूक 1/2
(त) 1/2 सवि
( विणअ ) 2 / 1
(कर + एप्पिणु) संकृ
[ ( सामि) - (साल) - (तणुरुह ) 2 / 2 वि ]
(पणव+एप्पिणु) संकृ
(सुर) - (णर) - (विसहर' ) - (भय) 2 / 1
अव्यय
(जणेर - (स्त्री) जणेरी) 2 / 1 वि
(कर) विधि 2 / 1 सक
परसर्ग
( पणव) विधि 2 / 1 सक
(क) 1 / 1 सवि
विसहर= वृषधर=धर्म धारण करनेवाला = धार्मिक |
[(UR)-(UITE) 6/1]
(केर - (स्त्री) केरी) 2/1 (दे)
For Private & Personal Use Only
दूत
मनुष्यों के मन को हरनेवाला राजपुत्रों के घर
वृक्ष - समूह से ( निर्मित) सुन्दर तोरणवाला
घोड़े और हाथीवाला
टी हुई जमीन
के भागवाला
उनके (उसके द्वारा
कहे गये
वे
विनय
करके
स्वामी, श्रेष्ठ, पुत्रों को
( सन्तान को )
प्रणाम करके
देवता, मनुष्य, धार्मिक (जन में) भय को
निश्चय ही
उत्पन्न करनेवाली
करो
सम्बन्धवाचक
नरनाथ की
सेवा
प्रणाम करो
क्या
206
www.jainelibrary.org