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भणिय णिराइणा
रूढराइणा चंडवाउवेयं
कि
क्यों
थियमिह
(भण-भणिय) भूक 1/1
कहा गया (णिराइ) 3/1 वि
निर्भय (के द्वारा) [(रूढ) वि-(राअ) 3/1]
प्रसिद्ध राजा के द्वारा [[(चंड)-(वाउ)-(वेय) 1/1] वि] प्रचण्ड वायु के वेगवाला अव्यय [(थिय) + (इह)] (थिय) भूकृ 1/1 अनि ठहरा, इह = अव्यय
यहाँ (रहंग-य) 1/1 'य' स्वार्थिक
चक्र [(णिच्चल)+ (अंगय)]
दृढ़ अंगवाला [[(णिच्चल) वि-(अंगय) 1/1 'य' स्वार्थिक] वि [[(तरुण)-(तरणि)-(तेय) 1/1] वि] युवा सूर्य के तेजवाला
रहंगय णिच्चलंगयं
तरुणतरणितेयं
उसको
11.11 liber 11.1.1
णिसुणेप्पिणु भणइ पुरोहिउ
(त) 2/1 स (णिसुण+एप्पिणु) संकृ (भण) व 3/1 सक (पुरोहिअ) 1/1 [(जेण)+(इयहु)] जेण (ज) 3/1 स इयहु (इम-इअ- इयं) 6/1 स [(गइ)-(पसर) 1/1] (णिरोहिअ) भूकृ 1/1 अनि
जेणेयहु
सुनकर कहता है (कहा) पुरोहित जिस कारण से, इसकी गति का प्रवाह रोका गया
गइपसरु णिरोहिउ
अक्खमि
णिसुणहि परमेसर
(अक्ख) व 1/1 सक (त) 2/1 स (णिसुण) विधि 2/1 सक (परमेसर) 8/1 [(देव)-(देव) 8/1] (दुज्जय) 8/1 वि (भरहेसर) 8/1
बताता हूँ उसको सुनो (सुनें) हे परमेश्वर हे देवों के देव दुर्जेय हे भरतेश्वर
देवदेव
दुज्जय भरहेसर
निराधि-निराहि-निराइ-णिराइ
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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