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तुम
नहीं
(तुम्ह) 1/1 स अव्यय (सुत्त) भूकृ 1/1 अनि (सुत्तअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक [(महि)-(मण्डल) 1/1]
सोये
सुत्तउ
सो गया पृथ्वीमण्डल
महि-मण्डलु
सीय
सीता
नहीं
आणिय
लायी गई
आणिय
जमउरि हरि-वल
(सीया) 1/1 अव्यय (आण-आणिय (स्त्री)-आणिया) भूकृ 1/1 (आण-आणिय (स्त्री)-आणिया) भूकृ 1/1 (जमउरी) 1/1 [(हरि)-(वल) 1/1] (कुद्ध) भूकृ 1/1 अनि अव्यय (कुद्ध) भूकृ 1/1 अनि (केसरि) 1/1
लाई गई यमपुरी राम की सेना कुपित हुई
कुद्ध ण
नहीं
कुद्धा केसरि
कुपित हुआ सिंह
सुरवर-सण्ढ-वराइणा
[(सुरवर)-(सण्ढ)-(वराई) 3/1 वि]
बेचारे देवताओं के समूह द्वारा सभी काल में जो
सयल-काल
मिग
हरिण
सम्भूया
[(सयल)-(काल) 7/1] (ज) 1/2 सवि (मिग) 1/2 (सम्भूय) भूकृ 1/2 अनि (रावण) 8/1 (तुम्ह) 3/1 स (सीह) 3/1
रहे
रावण
पइँ
हे रावण तेरे सिंह के
सीहेण
1.
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति में भी शून्य प्रत्यय का प्रयोग पाया जाता है। श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 147
173
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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