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________________ विणिवाइड (विणिवाइअ) भूकृ 1/1 अनि गिरा दिया गया 2. ददुर मेंढ़क * रोने वि लग्ग * सज्जण (ददुर) 1/2 (रड) 7/1 अव्यय (लग्ग) भूकृ 1/2 अनि अव्यय (सज्जण) 1/2 अव्यय (णच्च) व 3/2 अक (मोर) 1/2 (खल) 1/2 वि (दुज्जण) 1/2 वि इसलिये लगे की तरह सज्जनों की तरह नाचते हैं (नाचे) मोर शरारती णच्चन्ति * मोर खल दुज्जण दुष्टों मानो * * सरिउ अक्कन्हें भरती हैं (भरा) नदियों में रोने के कारण अव्यय (पूर) व 3/2 सक (सरि) 1/2 (अक्कन्द) 3/1 अव्यय (कइ) 1/2 (किलिकिल) व 3/2 अक (आणन्द) 3/1 मानो कइ किलिकिलन्ति कवि प्रसन्न होते हैं (हुए) आनन्द से आणन्हें मानो कोयलें अव्यय (परहुय) 1/2 (विमुक्क) भूकृ 1/2 अनि (उग्घोस) 3/1 विमुक्क - उग्घोसें। स्वतन्त्र की गई ऊँची आवाज में 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) 167 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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