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________________ उण्हालउ उष्ण/ग्रीष्म ऋतु (उण्ह+आल=उण्हाल-उण्हालअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक धग-धग-धग-धगन्तु उद्धाइउ (धग-धग-धग-धग) वकृ 1/1 (उद्धाइअ) भूकृ 1/1 अनि (हस हस हस हस) वकृ 1/1 (संपाइअ) भूकृ 1/1 अनि खूब (धग-धग) जलती हुई ऊँची दौड़ी (उठी) उत्तेजित होती हुई प्रवृत्त हुई हस-हस-हस-हसन्तु संपाइउ जल जल जल जल जल पचलन्तउ जालावलि-फुलिङ्ग (जल जल जल जल जल) व 3/1 अक तेजी से जलती है (जली) (प-चल-पचलन्त•पचलन्तअ) वृक 1/1 चलती हुई (कूच करती हुई) 'अ' स्वार्थिक [(जाला)+(आवलि)+(फुलिङ्ग)] लपट की, श्रृंखला से, [(जाला)-(आवलि)-(फुलिङ्ग) 2/2] चिंगारियों को (मेल्ल-मेल्लन्त-मेल्लन्तअ) वकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक छोड़ते हुए मेल्लन्तउ 6. धूमावलि-धयदण्डुब्भेप्पिणु [(धूम) + (आवलि)+ (धय)+(दण्ड)+ धमू की, श्रृंखला के, (उब्भेप्पिणु)] [(धूम)-(आवलि)-(धय)- ध्वजदण्डों को, ऊँचा करके (दण्ड)-(उन्भ+एप्पिणु) संकृ] [(वर) वि-(वाउल्लि)-(खग्ग) 2/1] श्रेष्ठ, तूफानरूपी, तलवार को (कड्ड+एप्पिणु) संकृ खींचकर वर-वाउल्लि-खग्गु कड्ढेप्पिणु झड झड झड झडन्तु झपट मारते हुए पहरन्तउ तरुवर-रिउ-भड-थड (झड झड झड झड) वकृ 1/1 (पहर-पहरन्त-पहरन्तअ) वृक 1/1 'अ' स्वार्थिक [(तरु)-(वर) वि-(रिउ)-(भड)-(थड) 2/1] (भज्ज-भज्जन्त-भज्जन्तअ) वकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक प्रहार करते हुए श्रेष्ठ वृक्षोंरूपी, शत्रु के, योद्धा, समूह को भज्जन्तउं नष्ट करते हुए मेह-महागय-घड [(मेह)-(महा) वि-(गय)-(घडा) 2/1] मेघरूपी, महा-हाथियों की, टोली को 165 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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