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सण्णद्धउ
(सण्णद्धअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वा. आक्रमण के लिए तैयार
28.2
जब
पाउस-णरिन्दु गलगज्जिउ धूली-रउ णिम्भेण
अव्यय [(पाउस)-(णरिन्द) 1/1] [(गलगज्ज-गलगज्जिअ) भूकृ 1/1] [(धूली)-(रय-रअ') 1/1] (गिम्भ) 3/1 (विसज्ज) भूकृ 1/1
पावस-राजा गरजा । धूल-वेग ग्रीष्म द्वारा भेजा गया
विसज्जिउ
2.
गम्पिणु मेह-विन्दे आलग्गउ
[गम+एप्पिणु-गमेप्पिणु-गम्पिणु] संकृ जाकर [(मेह)-(विन्द) 7/1]
मेघ-समूह को (आलग्ग-आलग्गअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक
चिपक गई [(तडि)-(करवाल)-(पहार) 3/2] बिजलीरूपी तलवार
के प्रहारों से (भग्गअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक छिन्न-भिन्न कर दी गई
तडि-करवाल-पहारेहिँ
भग्गउ
अव्यय
जब विवररम्मुहु (विवरम्मुह) 2/1 वि
विमुख (विपरीत मुख) को चलिउ (चल-चलिअ) भूकृ 1/1
चली विसालउ
(विसाल अ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक भयंकर उट्ठिउ (उ8) भूक 1/1
उठी (हण) विधि 2/1 सक (भण-भणन्त) वकृ 1/1
कहती हुई रअ वेग 2. देखें पृष्ठ 31, 27.14.9, पाद टिप्पणी
कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-137)
मारो
हणु भणन्तु
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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