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________________ आकाश के क्षेत्र में पसरइ फैलती है जेम [(गयण)-(अङ्गण) 7/1] (पसर) व 3/1 अक अव्यय (सेण्ण) 1/1 [(समर)+ (अङ्गणे)] [(समर)-(अङ्गण) 7/1] जिस प्रकार सेना सेण्णु समरङ्गणे युद्ध के क्षेत्र में 2. पसरइ फैलता है जेम जिस प्रकार अन्धकार तिमिरु अण्णाणहो (पसर) व 3/1 अक अव्यय (तिमिर) 1/1 (अण्णाण) 6/1 (पसर) व 3/1 अक अव्यय (वुद्धि) 1/1 (बहु-जाण) 6/1 वि पसरइ अज्ञान का फैलती है जिस प्रकार जेम वुद्धि बहु-जाणहो बुद्धि बहुत प्रकार का ज्ञान रखनेवाले की 3. पसरइ फैलता है जेम जिस प्रकार पाउ पाप पाविठ्ठहों (पसर) व 3/1 अक अव्यय (पाअ) 1/1 (पावि+इट्ठ'-पाविठ्ठ) 6/1 वि (पसर) व 3/1 अक अव्यय (धम्म) 1/1 (धम्म+इट्ठ-धम्मिट्ठ) 6/1वि पसरइ अत्यन्त पापी का फैलता है जिस प्रकार धम्मु धम्मिट्ठहो अत्यन्त धार्मिक का 4. . पसरइ (पसर) व 3/1 अक अव्यय फैलता है जिस प्रकार जेम 1. इट्ठ = इष्ट (तुलनात्मक विशेषण के लिए लगाया जाता है) अभिनव प्राकृत व्याकरण, पृष्ठ 261 161 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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