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________________ पाएहिँ (पाअ) 3/2 पैरों से दिवे दिवे वन्दिण-विन्देहिँ थुव्वहि अज्जु काइँ (दिव) 7/1 (दिव) 7/1 [(वन्दिण)-(विन्द) 3/2] (थुव्वहि) व कर्म 2/1 सक अनि अव्यय प्रतिदिन स्तुति-गायकों के समूहों द्वारा स्तुति किये जाते (थे) आज कैसे स्तुति किये जाते हुए नहीं सुने जाते हो थुव्वन्तु अव्यय (थुव्वन्त) वकृ कर्म 1/1 अनि अव्यय (सुव्वहि) व कर्म 2/1 सक अनि ण सुव्वहिं दिवे दिवे धुव्वहि चमर-सहासेहिँ अज्जु काइँ (दिव) 7/1 (दिव) 7/1 (धुव्वहि) व कर्म 2/1 सक अनि [(चमर)-(सहास) 3/2 वि] अव्यय प्रतिदिन पंखा किये जाते (थे) हजारों चैवरों से आज अव्यय तउ (तुम्ह) 6/1 स (क) 1/1 स क्यों तुम्हारे कोई भी को वि अव्यय नहीं पासेहिँ (पास) 7/1 आस-पास में 6. दिवे-दिवे लोयहिँ वुच्चहि (दिव) 7/1 (दिव) 7/1 (लोय) 3/2 (वुच्चहि) व कर्म 2/1 सक अनि (राणअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक अव्यय प्रतिदिन लोगों के द्वारा बोले (कहे) जाते थे राणउ - राणा आज अज्जु काइँ दीसहि अव्यय (दीसहि) व कर्म 2/1 सक अनि क्यों दिखाई देते हो श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 146 137 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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