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________________ थिय अव्यय (थिय- (स्त्री) थिया) भूकृ 1/1 अनि (विवण्ण- (स्त्री) विवण्णा) 1/1वि की तरह स्थिर निस्तेज विवण्ण पणवेप्पिणु वुच्चइ प्रणाम करके कहा जाता है सुप्रभा के द्वारा हे प्रभु सुप्पहाए किर (पणव) संकृ (वुच्चइ) व कर्म 3/1 सक अनि (सुप्पहा) 3/1 (अव्यय) सम्बोधनार्थक (काइँ) 1/1 सवि (अम्ह) 6/1 स (तणिया) 3/1 वि (कहा) 3/1 काइँ क्या मेरे महु तणियए सम्बन्धार्थक परसर्ग विशेषण चर्चा से कहाए of 2 155 पाणवल्लहिय प्राणों से प्यारी अव्ययव (अम्ह) 1/1 स अव्यय [(पाण) + (वल्लहा)+(इय)] [(पाण)-(वल्लहा) 1/1] इय = अव्यय (देव) 8/1 अव्यय [(गन्ध)-(सलिल) 2/1] (पाव) व 3/1 सक इस प्रकार हे देव गन्ध-सलिलु गन्धोदक पावइ पाती है ण अव्यय नहीं केम अव्यय क्यों तहिं उसी उसी अवसरे समय पर (त) 7/1 सवि (अवसर) 7/1 (कञ्चुइ) 1/1 (ढुक्क) भूकृ 1/1 अनि कञ्चुइ कञ्चुकी पहुँचा ढुक्कु अपभ्रंश काव्य सौरभ 124 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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