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________________ व्याकरणिक विश्लेषण एवं शब्दार्थ पाठ - 1 पउमचरिउ सन्धि - 22 कोसलणन्दणेण [(कोसल)-(णन्दण) 3/1] स-कलत्ते कोशलनगर के (राज-) पुत्र द्वारा पत्नी सहित अपने घर पहुँचे हुए (के द्वारा) अषाढ की अष्टमी के दिन णिय-घरु आएं आसाढठ्ठमिहिँ [(स) वि- (कलत्त) 3/1] [(णिय) वि- (घर) 1/1] | (आअ) भूक 3/1 अनि [(आसाढ)+(अट्ठमिहि)] [(आसाढ)-(अट्ठमी) 7/1] स्त्री [(किअ) भूकृ 1/1 अनि (ण्हवण) 1/1 (जिणिन्द) 6/1 (राअ) 3/1 किउ किया गया ण्हवणु जिणिन्दहो अभिषेक जिनेन्द्र का राएं राजा के द्वारा 22.1 सुर-समर-सहासेहिं [(सुर)-(समर)-(सहास') 3/2] दुम्महेण किउ (दुम्मह) 3/1 वि (किअ) भूकृ 1/1 अनि (ण्हवण) 1/1 देवातओं के साथ हजारों युद्धों में कठिनाई से मारे जानेवाले किया गया अभिषेक ण्हवणु 1. कभी-कभी सप्तमी के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137)। अपभ्रंश काव्य सौरभ 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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