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________________ पाठ - 14 हेमचन्द्र के दोहे (1) (आश्चर्य है कि) सागर घास-फूस को ऊपर रखता है (और) रत्नों को पैंदे में फेंक देता है। (इसी प्रकार) (आश्चर्य है कि) राजा गुणवान सेवक को त्याग देता है (और) दुष्ट सेवकों का सम्मान करता है। (2) (आचरणरूपी) ऊँचाई से उड़ने के कारण (हटने/डिगने के कारण) गिरा हुआ दुष्ट (व्यक्ति) अपने को (और) (दूसरे) मनुष्यों को नष्ट करता है, जिस प्रकार पर्वत की शिखा से गिरी हुई शिला (अपने साथ) अन्य को भी टुकड़े-टुकड़े कर देती (3) जो स्वयं के गुणों को छिपाता है, दूसरे के (गुणों को) प्रकट करता है, उस दुर्लभ सज्जन की (इस) कलि-युग में (मैं) पूजा करता (हूँ)। (4) दैव ने वन में पक्षियों के लिए वृक्षों के पके फल बनाए, वह (पक्षियों के लिए) श्रेष्ठ सुख (है), (क्योंकि) (वन में रहने के कारण उनके) कानों में दुष्टों के वचन प्रविष्ट (प्रवेश) नहीं हुए। (5) स्वामी के बड़े भार को देखकर (गाड़ी में जुता हुआ) उत्तम बैल खेद करता है (कि) हे (स्वामी)! मैं (अपने) दो विभाग करके दोनों दिशाओं में क्यों न जोत दिया गया? ___(6) कमलों को छोड़कर भँवरों के समूह हाथियों के गंडस्थलों की इच्छा करते हैं। (ठीक ही है) जिनका कदाग्रह (हठ) असुलभ लक्ष्य को (प्राप्त करना है) वे (उसको) बिल्कुल दूर (स्थित) नहीं मानते (हैं)। अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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