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चौथा अधिकार
आनन्दराय इन्द्रपद प्राप्ति वर्णन |
सोरठा मारुथल संसार, वामानंदन कलपतरु । वांछित फल दातार, सुखकामी सेवो सदा ||१||
चौपाई। इसही जंबूदीप मझार । भरतखंड दच्छिन दिसि सार || कौसलदेस बसै अभिराम | नगर अजोध्या उत्तम ठाम ||२|| आरजखंड माहिं परधान । मध्यभाग राजै सुभथान || गढ़ गोपुर खाई गृहपांति । घनबनसौं सोहै बहुभांति ||३|| ऊंचे जिनमंदिर मनहरै । कंचन कलस धुजा फरहरै ।। वज्रबाहु भूपति तिहिं थान | वर-इख्वाकवंस-नभ-भान ||४|| जैनधर्म पालै बढ़भाग | जिनपद-कमलनि मधुप सराग ।। प्रभाकरी तिय ताघर सती । जीती जिन रंभा-रति-रती ||५||
दोहा । यथा हंसके वंसकौं, चाल न सिखवै कोय । त्यों कुलीन नर-नारिक, सहज नमन-गुन होय ॥६॥
चौपाई। वह अहमिंद्र तहातैं चयौ । तिनकै सुदिन पुत्र सो भयौ ।। नांव धस्यौ आनंदकुमार | अतुल तेज सब लच्छन सार ||७|| सभग सोम श्रीवंत महान । बलं-वीरज-धीरजगुनथान ।। नरनारी-मन-मानिक-चोर । देखत नयन रहैं जा ओर ||८|| जाके सुगुन सेस कह थकै । और कौन बरनन कर सकै ।। जोबनवंत जनक तिस देख | ब्याह महोत्सव कियौ विसेख ।।९।। परनी राजसता बह भाय । जिनकी छबि बरनी नहिं जाय ।। क्रमसौं कमर पितापद पाय | बलसौं बस कीये बह राय ||१०||
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