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करता हुआ आनंद से काल व्यतीत होता जा रहा था । एक दिन उसने अपने शिर में एक सफेद बाल को देखा । तो उसे वैराग्य हो गया । वह सोचने लगा कि अब आयु कम रह गई है। सफेदबाल बुढ़ापे की निशानी है और बुढ़ापा मृत्यु का मित्र है । यह सोचकर राजपाट छोड़ दीक्षा ग्रहण की और तप करने लगे । कुछ समय बाद मुनि आनंद विहार करते हुए क्षीरवन में पहुंचे और शिला पर बैठ कर ध्यान करने लगे । वह कमठ का जीव कुरंग भील की पर्याय पूर्ण कर मुनि हत्या के पाप से सातवें नरक में नारकी हुआ । वहां के दुख भोग कर इसी क्षीरवन में सिंह की पर्याय में आया । आज मुनि आनंद को देखते ही उसे जाति स्मरण हो गया । उसने पूर्व भव का वैरी समझ कर मुनि को अपनी विकाराल दाढ़ों और नखों से विदीर्ण कर मार डाला । मुनि ने उपसर्ग सहन करते शान्ति पूर्वक प्राणों को छोड़ कर आनत स्वर्ग में इन्द्र पद प्राप्त किया । वहां के स्वर्ग निवासी देवों ने उनका स्वागत किया और उन्हें अपना राजा मानते हुए इन्द्रासन पर अधिष्ठित कर दिया । पाँचवा अधिकार
__ अब इन्द्र अपनी इन्द्राणियों के साथ अकृत्रिम जिनालयों की वंदना करता । जिनेन्द्र पंच कल्याणकों में पहुंच धर्मश्रवण करता । बीस सागर की आयु सुखपूर्वक पूर्ण करते हुए जम्बूद्वीप की दक्षिण दिशा में भरतक्षेत्र के मध्य वाराणसी नगरी है । इसके राजा विश्वसेन और रानी वामादेवी थी । राजा नीतिनिपुण सर्वगुण-सम्पन्न था । एक दिन उसकी रानी वामादेवी ने रात्रि के पिछले पल बड़े सुन्दर सोलह स्वप्न देखे । प्रातः उठकर अपने पति से उनका फल पूछा । राजाने कहा देवी बड़े सुन्दर स्वप्न हैं । तुम बड़ी सौभाग्यशाली हो । तुम्हारी कूख से तीर्थंकर होने वाला एक बालक उत्पन्न होगा । जो तीनों लोकों का राजा होगा । लोगों को धर्म-मार्ग बताने वाला मोक्षगामी होगा । यह सुनकर वामादेवी खुशी में डूब गई और आनंदित हो सुखपूर्वक दिन बिताने लगी । प्रथम स्वर्ग के इन्द्र ने कुबेर को आज्ञा दी कि वह जाकर नगरी की सुन्दर रचना करे । माता की सेवा के लिए छप्पन कुमारी भेज दी । पन्द्रह माह तक तीन समय रत्नों की वर्षा उस नगरी में होने लगी । आनत स्वर्ग का इन्द्र अपनी आयु पूर्ण कर वामादेवी के गर्भ में वैसाख कृष्ण द्वितीय के दिन अवतरित हुआ | नव मास माँ के उदर में रहे | उस समय मां की सेवा में षट कुमारिकाएं तत्पर रहती थीं । सदा मां को प्रसन्न रखती । उनसे बड़े सुन्दर और अटपटे प्रश्न पूछतीं । मां उनका उत्तर देती थीं | नौ मास पूर्ण होते ही पौष कृष्ण एकादशी के दिन एक पुत्र ने जन्म लिया ।
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