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संदृष्टि नं.36
ब्रह्मादि छह स्वर्ग भाव (31) ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव, कापिष्ठ , शुक्र और महाशुक्र स्वर्ग में पर्याप्त अवस्था में 31 भाव होते हैं। जो इस प्रकार हैं - इन स्वर्गों में भाव आदि का कथन सौधर्म ऐशान स्वर्ग के देवों के समान ही जानना चाहिए मात्र इन स्वर्गों में पीत लेश्या के स्थान पर पद्म लेश्या समझना चाहिए। संदृष्टि इस प्रकार है - दे. संदृष्टि (32) सौधर्म - ऐशान स्वर्ग गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति मिथ्यात्व
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भाव
अभाव
सासादन
मिश्र
अविरत
संदृष्टि नं. 37 ब्रह्मादि छह स्वर्ग अपर्याप्त भाव (30) ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव, कापिष्ठ, शुक्र और महाशुक्र स्वर्ग में 30 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं - इनस्वों में भाव आदिका समस्त कथनसौधर्मयुगल की अपर्याप्त अवस्था के समान समझना चाहिए । मात्र पीत लेश्या के स्थान पर इन स्वर्गों में पद्म लेश्या समझना चाहिए। संदृष्टि इस प्रकार है - दे. सौधर्म - ऐशान स्वर्ग अपर्याप्त संदृष्टि (33)। गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव | अभाव । मिथ्यात्व
सासादन
अविरत
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