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________________ पृथ्वी के नारकियों की अपर्याप्त अवस्था में (पढमगुण)प्रथम गुणस्थान ही होता है। भावार्थ- सभी नारकियों के अपर्याप्त अवस्था में विभंगावधि ज्ञान एवं उपशम सम्यक्त्व नहीं होता है। प्रथम नरक के नारकियों की अपर्याप्त अवस्था में पहला और चौथा ये दो गुणस्थान तथा शेष दूसरी आदि सभी पृथ्वियों में अपर्याप्त अवस्था में पहला मिथ्यात्व गुणस्थान ही होता है। इति नरक-रचना संदृष्टि नं.2 सामान्य नरक रचना {33 भाव) नरक गति में पर्यास अवस्था में 33 भाव होते हैं। जो इस प्रकार हैं - उपशम सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व, कुज्ञान 3, ज्ञान 3, दर्शन 3; क्षायोपशमिक लब्धि 5, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, नरकगति, कषाय 4, नपुंसक लिंग, अशुभ लेश्या 3, मिथ्यात्व, असंयम अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 3 | गुणस्थान आदि के चार होते हैं गुणस्थानों में भाव आदि का कथन इस प्रकार है - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव अभाव {26} {चक्षुदर्शन, I7) {औपशमिक मिथ्यात्व (मिथ्यात्व, अचक्षु दर्शन, कुमति, | सम्यक्त्व, क्षायिक अभव्यत्व कुश्रुत, कुअवधि ज्ञान, सम्यक्त्व, मति, श्रुत क्षायोपशमिक पाँच । अवधि ज्ञान, लब्धि, नरक गति, क्षयोपशमिक कृष्ण, नील, कापोत | सम्यक्त्व, अवधि लेश्या, नपुंसक लिंग दर्शन} अज्ञान, असिद्धत्व, मिथ्यात्व, असंयम, चार कषाय, जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व (2) (35) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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