________________
गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव
अभाव 9. (3) (पुल्लिंग, |(28) [औपशमिक (25) (औपशमिक चारित्र, अनिवृत्ति-स्त्रीलिंग, सम्यक्त्व, क्षायिक पॉच क्षायिक लब्धि करण नपुंसकलिंग] सम्यक्त्व, मति, श्रुत, केवलज्ञान, केवलदर्शन सवेद
अवधि, मनःपर्यय ज्ञान क्षायिक चारित्र, कुमति चक्षु, अचक्षु, अवधि कुश्रुत, कुअवधि ज्ञान, दर्शन, क्षायोपशमिक क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पॉच लब्धि, सराग संयमासंयम, तिर्यञ्च, चारित्र, मनुष्यगति, नरक, देव गति, कृष्ण, शुक्ल लेश्या, तीन नील, कापोत, पीत, पद्म लिंग, चार कषाय, लेश्या असंयम, मिथ्यात्व अज्ञान असिद्धत्व, अभव्यत्व) जीवत्व, भव्यत्व
9. (3) अनिवृत्ति-क्रोध, मान, करण माया कषाय) अवेद
(25) [औपशमिक (28) [औपशनिक चारित्र सम्यक्त्व, क्षायिक
| पाँच क्षायिक लब्थि, सम्यक्त्व, मति, श्रुत,
केवल ज्ञान, केवलदर्शन, अवधि, मनःपर्यय ज्ञान
क्षायिक चारित्र, कुमति चक्षु, अचक्षु, अवधि
| कुश्रुत, कुअवधि ज्ञान दर्शन क्षायोपशमिक
क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, पाँच लब्धि, सराग
संयमासंयम, तिर्यश्च, चारित्र, मनुष्यगति
नरक, देव गति कृष्ण, शुक्ल लेश्या, चार
नील, कापोत, पीत, पद्म कषाय, अज्ञान,
लेश्या, तीन लिंग, असिद्धत्व, जीवत्व,
असंयम मिथ्यात्व, भव्यत्व)
अभव्यत्व
(26)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org