SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति सूक्ष्मसा. 2 (लोभ, सराग चारित्र) उप. मोह 2 (औपशमिक भाव 2) गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति असंयत 6 (अशुभ लेश्या 3, असंयम, नरक गति, देव गति) देशसंयत 2 भाव (संयमासंयम, तिर्यचगति) 21 ( उपर्युक्त 24 - कषाय 3) टिप्पण :- मनः पर्यय ज्ञान का अभाव प्रथमोपशम सम्यक्त्व के साथ है द्वितीयोपशम के साथ नहीं । Jain Education International 20 (पूर्वोक्त 21 + उपशम चारित्र - लोभ, सराग चारित्र) संदृष्टि नं 83 वेदक सम्यक्त्व भाव (37) वेदक सम्यक्त्व में 37 भाव होते हैं। जो इस प्रकार है- वेदक सम्यक्त्व, ज्ञान 4, दर्शन 3, क्षायो. लब्धि 5, संयमासंयम, सराग संयम, गति 4, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 6, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व । गुणस्थान असंयत आदि चार होते हैं। संदृष्टि निम्न प्रकार से है - भाव 34 (ज्ञान 3, दर्शन 3, वेदक सम्यक्त्व, क्षायो. लब्धि 5, गति 4, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 6, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व) 29 (ज्ञान 3, दर्शन 3, वेदक सम्यक्त्व संयमासंयम, क्षायो. लब्धि 5, मनुष्य गति, तिर्यश्च गति, कषाय 4, लिंग 3, 3 शुभ लेश्या, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व) अभाव 17 ( उपर्युक्त 4 + कषाय 3) (136) 18 (17-उपशमचारित्र + (लोभ, सराग चारित्र) अभाव 3 (मनःपर्यय ज्ञान, संयमासंयम, सराग संयम ) For Private & Personal Use Only 8 (मनः पर्यय ज्ञान, अशुभ लेश्या 3, संयमासंयम, नरक, देव गति, असंयम ) www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy