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________________ मनःपर्यय ज्ञान में द्वितीयोपशम सम्यक्त्व का सद्भाव पाया जाता है। संदृष्टि नं.63 मनःपर्यय ज्ञान भाव (30) मनःपर्यय ज्ञान में 30 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं - उपशम चारित्र, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, मति आदि 4 ज्ञान, दर्शन 3, क्षायोपशम लब्धि 5, सरागसंयम, क्षयो. सम्यक्त्व, मनुष्य गति, संज्वलन 4 कषाय, पुल्लिंग, शुभ लेश्या 3, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व । गुणस्थान प्रमत्तादि सात होते हैं संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान| भाव व्युच्छित्ति भाव अभाव प्रमत्त 28 (क्षायिक 2 (उप. चारित्र, क्षायिक सम्यक्त्व, मति आदि | चारित्र) 4 ज्ञान, दर्शन 3, क्षायो. लब्धि 5, सरागसंयम, क्षायो. सम्यक्त्व, मनुष्यगति, संज्वलन 4 कषाय, पुल्लिंग, शुभ लेश्या | 3, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व,भव्यत्व) अप्रत्त | 2 (उपर्युक्त) 3 (पीत, पद्म 28 (उपर्युक्त) लेश्या, क्षायो.सम्यक्त्वा अपू. 25 (28 उपरोक्त - पीत, 15 (2 उपर्युक्त + पीत पद्म लेश्या 2, क्षायो. | पद्म लेश्या 2. क्षायो. सम्यक्त्व) सम्यक्त्व) अनि. स. | 1 (पुल्लिंग) 25 (उपर्युक्त) 5 (उपर्युक्त) अनि.अ. 3 (क्रोध, मान, 24 (25 उपर्युक्त - 6 (5 उपर्युक्त + माया) पुल्लिंग) पुल्लिंग) (114) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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